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कविता

वर्तमान का गया बीता

अनिल पांडेय


एक
जीवन जीता है
एक का
जीवन रीता है

एक और है
जो न जीता है
न रीता है

समय की मार से
बौखलाया
अतीत से ठुकराया हुआ
वर्तमान का गया बीता है


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